शनिवार, 20 जून 2009
सोमवार, 15 जून 2009
झरता रहा हारसिंगार
झरता रहा हारसिंगार
कहा तो कुछ भी नहीं ऐसा
आपने
जो बदल दे स्वाभाव समय का
हो ऐसा अद्भुत विन्यास शब्दों का ।
नहीं
ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा ।
बस
देख कर अनदेखा नहीं किया,
बस देखा
और सहज ही
अभिवादन किया ।
फिर कहा
नाम भी तो नहीं था पता,
पहचानता कैसे कि
किसी का परिचय दहलीज़ पर
बाट जोहता खड़ा है ,
कोई बात साथ चल रही है
एक संवाद बुन रही है ।
बस इतना ही कहा
और हंस दिए धीमे से
सुबह की धूप सी हँसी ।
आसपास खिंच गई
लक्ष्मणरेखा
सरल और निश्छल दृष्टि की ।
अनायास ही
जाने क्या हुआ,
कई दिनों का इकट्ठा हुआ
दुःख
प्रतिकार
जो चोट सहते-सहते
पथरा गया था,
उस पत्थर से
सोता फूट पड़ा
आंखों से
गंगा-यमुना सा जल बह चला
सूर्य रश्मि की ऊष्मा ले
पावन हो गया ,
मन हल्का हो गया
फूल सा ,
हारसिंगार झरता रहा ।
कहा तो कुछ भी नहीं ऐसा
आपने
जो बदल दे स्वाभाव समय का
हो ऐसा अद्भुत विन्यास शब्दों का ।
नहीं
ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा ।
बस
देख कर अनदेखा नहीं किया,
बस देखा
और सहज ही
अभिवादन किया ।
फिर कहा
नाम भी तो नहीं था पता,
पहचानता कैसे कि
किसी का परिचय दहलीज़ पर
बाट जोहता खड़ा है ,
कोई बात साथ चल रही है
एक संवाद बुन रही है ।
बस इतना ही कहा
और हंस दिए धीमे से
सुबह की धूप सी हँसी ।
आसपास खिंच गई
लक्ष्मणरेखा
सरल और निश्छल दृष्टि की ।
अनायास ही
जाने क्या हुआ,
कई दिनों का इकट्ठा हुआ
दुःख
प्रतिकार
जो चोट सहते-सहते
पथरा गया था,
उस पत्थर से
सोता फूट पड़ा
आंखों से
गंगा-यमुना सा जल बह चला
सूर्य रश्मि की ऊष्मा ले
पावन हो गया ,
मन हल्का हो गया
फूल सा ,
हारसिंगार झरता रहा ।
शुक्रवार, 12 जून 2009
जब तुम पूछोगे अपने सवाल
आज
या तो बारिश आयेगी
भीतर तक भिगो कर जाएगी
आँखें नम कर जाएगी,
या फिर
आयेगा ठंडी हवा का झोंका
हाथ मिलाएगा
और पूछेगा
मन के मौसम का हाल ।
और जब तुम पूछोगे अपने सवाल
तब कंधे पर रखेगा हाथ
और समझाएगा
कि तुम्हें है इंतज़ार
जिस फुहार का
हो सकता है
रास्ते में रुकी हो और,
और बूँदें समेटती हो
पानी की तंगी वाले दिनों के लिए ।
पर देर-सबेर
ठंडी फुहार आयेगी
तुम्हारी पीठ थपथपायेगी -
सुनो ! धूप-छांव दोनों के मज़े लेना
इसी तरह हर मौसम को भरपूर जीना ।
गुरुवार, 11 जून 2009
कहने भर से
कोई भी बात
सिर्फ़
कहने भर से
पूरी नहीं हो जाती ।
बात जब दिखलाती है,
अपना असर -
तब जानी जाती है ।
मसलन,
एक बात पॉपकॉर्न सी उछलती है,
गेंद की तरह लपक ली जाती है ।
एक बात जलेबी सी पहेली है,
फिर भी बड़ी रसीली है !
एक बात तवे पर पानी की बूँद है,
फफोले की तरह फक रह जाती है ।
एक बात मानो कोई झांकी है,
दुनिया के तेवर दिखलाती है ।
एक बात धीमी आंच पर पकती है,
और भीतर तक सेंक जाती है ।
एक बात जाड़े की धूप सी मनभाती है,
मन का हर कोना गुनगुना कर जाती है ।
एक बात चौड़े पाट की नदी है,
चुपचाप आकाश को ताके जाती है ।
एक बात चूड़ियों सी खनकती है,
और मन की बात कह जाती है ।
एक बात बादलों सी मन पर छा जाती है,
कलेजे में बरसों घुमड़ती रहती है ।
एक बात दीवार की कील है,
जिस पर मनचाही तस्वीर टांगी जाती है ।
एक बात पेचीदा कलाकृति है,
ऊँचे दामों पर बेची जाती है ।
एक बात फूलों की माला सी है,
उपेक्षित भावनाओं को सम्मानित कर जाती है ।
एक बात अनकही बातों की बही है,
जनम भर का दुःख दे जाती है ।
एक बात गुम चोट सी है,
जो रह रह कर टीस उठाती है ।
एक बात चूल्हे की बुझती आग सी है,
चार बूँद छिड़कते ही ठंडी पड़ जाती है ।
एक बात मृगतृष्णा है,
असावधान को छल जाती है ।
एक बात इतनी सुहाती है,
कि सिरहाने रख कर सोई जाती है ।
एक बात महाभारत होती है,
जो हर यक्ष प्रश्न का उत्तर देती है ।
एक बात रामचरित मानस होती है,
जो जीवन का आधार होती है ।
एक बात गीता होती है,
जो मार्गदर्शन करती है ।
एक बात भागवत कथा होती है,
जो जीवन का सार होती है ।
एक बात मस्तक का तिलक होती है,
जो स्वाभिमान सी सीधी खिंची होती है ।
जिस बात से अपना जीवन सध जाए,
वही बात, बड़ी बात - करामात होती है ।
कोई भी बात
सिर्फ़
कहने भर से
पूरी नहीं हो जाती ।
बात जब दिखलाती है,
अपना असर -
तब जानी जाती है ।
मसलन,
एक बात पॉपकॉर्न सी उछलती है,
गेंद की तरह लपक ली जाती है ।
एक बात जलेबी सी पहेली है,
फिर भी बड़ी रसीली है !
एक बात तवे पर पानी की बूँद है,
फफोले की तरह फक रह जाती है ।
एक बात मानो कोई झांकी है,
दुनिया के तेवर दिखलाती है ।
एक बात धीमी आंच पर पकती है,
और भीतर तक सेंक जाती है ।
एक बात जाड़े की धूप सी मनभाती है,
मन का हर कोना गुनगुना कर जाती है ।
एक बात चौड़े पाट की नदी है,
चुपचाप आकाश को ताके जाती है ।
एक बात चूड़ियों सी खनकती है,
और मन की बात कह जाती है ।
एक बात बादलों सी मन पर छा जाती है,
कलेजे में बरसों घुमड़ती रहती है ।
एक बात दीवार की कील है,
जिस पर मनचाही तस्वीर टांगी जाती है ।
एक बात पेचीदा कलाकृति है,
ऊँचे दामों पर बेची जाती है ।
एक बात फूलों की माला सी है,
उपेक्षित भावनाओं को सम्मानित कर जाती है ।
एक बात अनकही बातों की बही है,
जनम भर का दुःख दे जाती है ।
एक बात गुम चोट सी है,
जो रह रह कर टीस उठाती है ।
एक बात चूल्हे की बुझती आग सी है,
चार बूँद छिड़कते ही ठंडी पड़ जाती है ।
एक बात मृगतृष्णा है,
असावधान को छल जाती है ।
एक बात इतनी सुहाती है,
कि सिरहाने रख कर सोई जाती है ।
एक बात महाभारत होती है,
जो हर यक्ष प्रश्न का उत्तर देती है ।
एक बात रामचरित मानस होती है,
जो जीवन का आधार होती है ।
एक बात गीता होती है,
जो मार्गदर्शन करती है ।
एक बात भागवत कथा होती है,
जो जीवन का सार होती है ।
एक बात मस्तक का तिलक होती है,
जो स्वाभिमान सी सीधी खिंची होती है ।
जिस बात से अपना जीवन सध जाए,
वही बात, बड़ी बात - करामात होती है ।
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