मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

रंगरेज़

तुम बातों के रंगरेज़ हो .
जिस रंग में चाहो ,
रंग दो , 
अपनी बातों को .

रंग फीका ना हो .
चोखा हो ,
चटकीला हो ,
पर पक्का हो !

जब चढ़े तो
मन में तरंग हो !
पग चंग, मृदंग, पतंग हो !

जब रचे तो
मेहंदी, हल्दी ..
रोली, ठिठोली ..
टेसू, गुलमोहर  ..
फागुन  की फुहार  ..
इन्द्रधनुष  हो !

तुम बातों के रंगरेज़ हो .
ऐसे रंग में रंग दो
अपनी बातों को ,
मानो  हर  सोच
एक  छंद हो .