मन को क्यों बंधक रखा है तुमने ? मन को मुक्त कर दो. इस नन्हे से पाखी को नभ की ऊँचाई नापने दो, जीवन की गहराई जानने दो. उसके पंखों में है कितनी उड़ान . . परखने दो.
खोल दो मन की खिड़की । बाहर की हवा आने दो . खिड़की के हिस्से का आसमान धूप के रास्ते उतर आने दो ज़मीन पर . धूल, धुंआ , बारिश की बौछार , मिटटी की महक बस जाने दो भीतर . खिड़की का खुलना है एक प्रबल संभावना, जीवन के चमत्कार की झलक मिल जाने की .