शनिवार, 24 जनवरी 2015

बस नहीं है क्या ?



मेरे मन  . . 
मेरी बात सुनो ना !
इस तरह उदास रहो ना !

माना कि बहुत कुछ ठीक नहीं हुआ !
जो चाहा था वो ना हुआ ! 
पासा ग़लत फेंका  . . 
या दांव नहीं लगा ।
आखिर ज़िंदगी है जुआ ।
ख़ैर ! जो हुआ सो हुआ !

पर ये भी तो देखो  . .
पौधे पर आज एक नया फूल खिला !
कुछ नमकीन कुछ ठंडी - सी है सुबह की हवा ।
स्कूल में हो रही है प्रार्थना सभा ।
बच्चों ने पार्क में जमाया आज खेल नया ।
समंदर का पानी है झिलमिला रहा !
जैसे लहरों पर हो चाँदी का वर्क बिछा !
कोई बाँसुरी देर से बजा रहा ।
जैसे जीवन के समस्त कारोबार का 
सार कब से उसे है पता ।

ट्रेन का सही समय पर आना ।
बस में बैठने को सीट मिल जाना ।
जेब में ज़रुरत भर के पैसे होना ।
तमाम हादसों के बीच हाथ - पाँव सलामत होना ।
बहुत नहीं है क्या ?

बहुत नहीं है क्या ?
खुशहाल रहने के लिए ।    
फ़िलहाल जीने के लिए ।  
   
एक कल असमंजस में बीता,
आने वाले कल का ठिकाना नहीं ।
पर ये खूबसूरत अहसास इस पल का,
किसी भी हाल में गँवाना नहीं !