रविवार, 18 दिसंबर 2016

तुम्हें याद रहेगा क्या ?


क्या तुम्हें पता है ?
मैंने हमेशा 
दिल से चाहा है,
कि तुम 
बड़े ना बनो ।  

बड़े ना बनो ।
अच्छे बनो ।

मुझे क्या तुम 
आश्वस्त कर पाओगे ?

जो भी 
मन में हो,
सही ग़लत हो, 
जैसा भी हो, 
जब भी कोई 
बात मन में आए ।
जस की तस 
जैसी मन में आये 
कह पाओगे ?
कहो मेरे लिए 
क्या इतना 
कर पाओगे ?
जीवन भर क्या 
ये याद रख पाओगे ?

क्या मित्रता की 
यह रवायत 
जीते-जी 
निभा पाओगे ?

क्या याद रख पाओगे 
हमेशा ?
किसी के पास तमाम 
सुख-दुःख का हिसाब, 
कल्पना का ज्वार, 
हर अटपटा सवाल, 
बेबुनियाद ख़याल, 
जब चाहे जी में 
उठता बवाल, 
और जिसके लिए     
तुम्हारे जीवन में 
जगह तक नहीं, 
वो नाजायज़ जज़्बात  . .  
सब तुम्हें दर्ज कराने हैं । 
छोड़ कर जाने हैं 
किसी के पास।

बिना किसी वजह के 
बिना किसी सवाल - जवाब 
जमा करते जाना है ,
क्योंकि ये अख़्तियार 
तुमने ख़ुद मुझे 
दिया है ।     

अहद किया है ,
कोई नाता हो ना हो, 
मन की हर बात तुम्हें 
देनी है मुझे, 
ताकि एक दिन 
इन सारी बातों को, 
मथ कर पिरो कर,  
कोई एक बात 
लौटा सकूँ तुम्हें
ताबीज़ की तरह ।

मेरे लिए इतना 
कर सकोगे क्या ?
तुम्हें याद रहेगा क्या ?

बताना ।