रविवार, 17 जुलाई 2016

उम्मीद





ये जो . . 

एक अकेला फूल 
मिट्टी में खिला है  . . 

ओ हेनरी की कहानी 
द लास्ट लीफ़ के 
अंतिम पत्ते की तरह ,

इस दुनिया के 
बचे रहने की 
आख़िरी उम्मीद है । 



शनिवार, 25 जून 2016

सोनमोहर


हर रोज़ उस रास्ते से 
गुज़रते देख कर मुझे 
क्या कहा होगा दूसरे पेड़ों से
उस अकेले सोनमोहर ने ?

एक दिन इस थके-माँदे 
राहगीर के रास्ते में ,   
क्यूँ ना बिछा दें 
फूल बहुत सारे ?

एक दिन के लिए ,
शायद बदल जाएं 
उसके चेहरे के,
भाव थके -  थके से ।

रास आ जाएं 
करतब ज़िंदगी के ।
बाहें फैला दें 
दायरे सोच के ।

तो क्यूँ ना बिछा दें 
फूल बहुत सारे ?



    

शुक्रवार, 17 जून 2016

कहो कब बरसोगे घन ?





कहो कब बरसोगे घन ?
कब पावन होगा मन ?



कब बूँदों की ताल पर 
आँगन आँगन झूमेगा ?
कब बावरा होगा मन ?


कब वर्षा को आँचल में भर 
छलकेंगे ताल तलैया ?
कब तृप्त होगा मन ?


कब मिटटी को गूंथेगा जल 
धरती में अंकुर फूटेगा ?
कब कुसुमित होगा मन ?


कब मेघों की गर्जना पर
मयूर पंख फैलाएगा ?
कब थिरकेगा मन ?


कब साँवले आकाश पर 
इंद्रधनुष मुस्काएगा ?
कब बलिहारी जाएगा मन ?


कब कल्पना के खुलेंगे पर 
कवि चित्रकार बन पाएगा ?
कब भावुक होगा मन ?


कहो कब बरसोगे घन ?
कब पावन होगा मन ?



रविवार, 12 जून 2016

क्या ऐसा नहीं हो सकता ?

तुमने 
दुनिया का 
सबसे बड़ा सच 
सुना दिया -
एक म्यान में 
दो तलवारें 
नहीं सकतीं !

ये बात कोई भी 
नकार नहीं सकता। 
पर क्या 
तुम्हारे मेरे 
दरमियान 
कोई और रिश्ता 
नहीं हो सकता ?

क्या ऐसा 
नहीं हो सकता कि 
हम साथ रहें  
तलवारों की तरह नहीं ,
हम जियें 
फूलों की तरह ,
साथ साथ  
एक ही क्यारी में खिलें ?
एक दूजे के मन में बसें 
खुशबू की तरह  . . 

क्या ऐसा 
नहीं हो सकता ?


शनिवार, 11 जून 2016

ढ़ोल बजाती लड़कियाँ

कमउम्र  . .  छोटी छोटी  
दुबली पतली ,
अपने वज़न से 
ज़्यादा भारी 
ढ़ोल उठाये ,
मस्ती का फेंटा बांधे ,
अपने कद से ऊँची उठती ,
पतंग की तरह लहराती ,
ताल पर झूमती ,
लयबद्ध मुस्कुराती ,
ढ़ोल बजाती लड़कियाँ !

वाह !  क्या खूब !
ताल ठोंकती लड़कियाँ !
लगता नहीं 
इनके रहते , 
कभी मायूस 
होगी दुनिया !
अपनी बेफ़िक्र मुस्कान से 
आत्मविश्वास जगाती लड़कियाँ !

इनकी आँखों की चमक के आगे 
फीकी है तमाम दुनिया !
चाहे मुसीबतों के 
पहाड़ टूट पड़ें ,
डट कर उनका सामना 
करेंगी ये लड़कियाँ !
हार नहीं मानेंगी ये लड़कियाँ !
इनके चेहरों के तेज में 
कौंधती हैं बिजलियाँ !
वाह ! कमाल की हैं ये लड़कियाँ !

चुपचाप अपनी चाहरदिवारी में  . . 
अपनी बिरादरी में  . .   
बदलाव लाती लड़कियाँ !
पूरी ढिठाई से मुस्कुराती ,
अपनी हँसी से चमचमाती , 
खुशियाँ लुटाती लड़कियाँ !

अपने अल्हड़पन का 
ऐलान करती लड़कियाँ !
अपने हौसलों से इतिहास के 
नए पन्ने सजाती लड़कियाँ !
ढ़ोल की धमक से चौंकती नहीं  . . 
चुनौती देती लड़कियाँ !
अपनी दबंगाई का 
परचम लहराती लड़कियाँ !

वाह ! क्या खूब !
ताल ठोंकती लड़कियाँ !
वाह कमेरी ! वाह घरेलू !
वाह वाह कमाल की लड़कियाँ !
लयबद्ध मुस्कुराती 
ढ़ोल बजाती लड़कियाँ !

  

मंगलवार, 7 जून 2016

फिर ज़िन्दगी के क्या कहने !


बुज़ुर्गों का सर पर हाथ हो ,
अपनों का साथ हो ,
थाली में दाल - भात हो ,
फिर ज़िन्दगी के क्या कहने !

मन में विश्वास हो ,
मुट्ठी भर जज़्बात हों ,
मेहनत के दिन - रात हों ,
फिर ज़िन्दगी के क्या कहने !

प्रार्थना से दिन शुरू हो ,
दोहों से दिन बुने हों ,
छंद में दिन ढला हो ,
फिर ज़िन्दगी के क्या कहने !

क्यारी में फूल खिला हो ,
घर में मीठा दही जमा हो ,
मंदिर में दीया जला हो ,
फिर ज़िन्दगी के क्या कहने !

सुख - दुःख से बड़ा कोई सपना हो ,
सपना सच करने का हौसला हो ,
हौसला हर हार से बड़ा हो ,
फिर ज़िन्दगी के क्या कहने !