गुरु दक्षिणा
जिससे जो सीखा
उसका माना आभार
जितना हो सका
जीवन में लिया उतार
nupuram@gmail.com
रविवार, 25 जुलाई 2010
सोमवार, 12 जुलाई 2010
दादी
दादी की यादें
दादी की बातें
मन से बंधी हैं
ताबीज़ की तरह.
दादी की बोली
दादी की ठिठोली
गाँठ से बंधी है
कमाई की तरह.
दादी की गोदी
दादी की थपकी
मन को समझाती है
लोरी की तरह.
दादी की झिड़की
दादी की उंगली
रास्ता दिखाती है
ध्रुव तारे की तरह.
nupuram@gmail.com
सोमवार, 5 जुलाई 2010
मुस्तकबिल
जिंदगी में
हमेशा
दो विकल्प होंगे
तुम्हारे सामने.
एक होगा
आसान,
जाना - पहचाना ..
सब कुछ वैसा ही होगा,
जैसा तुम चाहोगे.
पर शायद तुम समझ ही नहीं पाओगे
कि तुम आख़िर चाहते क्या हो ..
दूसरा विकल्प होगा
बिल्कुल मुश्किल,
अपरिचित,
अच्छी - बुरी संभावनाओं की
हाट लगाये बाट जोहता.
ना जाने जीवन की नैया
किस ठौर पहुंचाएगा ..
पर तय है इतना,
तुझे ख़ुद से वाक़िफ़ ज़रूर कराएगा.
तू ख़ुद को जान पायेगा,
प्यार कर पायेगा.
चुनो !
और अपना मुस्तकबिल
ख़ुद तय करो !
noopuram
जिंदगी में
हमेशा
दो विकल्प होंगे
तुम्हारे सामने.
एक होगा
आसान,
जाना - पहचाना ..
सब कुछ वैसा ही होगा,
जैसा तुम चाहोगे.
पर शायद तुम समझ ही नहीं पाओगे
कि तुम आख़िर चाहते क्या हो ..
दूसरा विकल्प होगा
बिल्कुल मुश्किल,
अपरिचित,
अच्छी - बुरी संभावनाओं की
हाट लगाये बाट जोहता.
ना जाने जीवन की नैया
किस ठौर पहुंचाएगा ..
पर तय है इतना,
तुझे ख़ुद से वाक़िफ़ ज़रूर कराएगा.
तू ख़ुद को जान पायेगा,
प्यार कर पायेगा.
चुनो !
और अपना मुस्तकबिल
ख़ुद तय करो !
noopuram
रविवार, 4 जुलाई 2010
असंभव
कैसे ?
पत्थरों के बीच
कोपल फूटती है ?
दीवार की दरार के
बीचों - बीच
कोमल पौधा
पनपता है ?
हवा की थपकी से
हौले-हौले हिलते हुए
बोध कराता है,
असंभव कुछ भी नहीं.
noopuram
कैसे ?
पत्थरों के बीच
कोपल फूटती है ?
दीवार की दरार के
बीचों - बीच
कोमल पौधा
पनपता है ?
हवा की थपकी से
हौले-हौले हिलते हुए
बोध कराता है,
असंभव कुछ भी नहीं.
noopuram
शुक्रवार, 2 जुलाई 2010
रिश्ते
देखते - देखते
ना जाने कब
सारे फ़र्नीचर पर
धूल की तह
जम गई.
आँख की नमी
बर्फ़ हो गयी.
धमनियों में
खून की
रवानी
थम गई.
बालकनी में
फूली बेल
मुरझा गई.
बरनी के अचार में
फफूंद लग गई.
हंसती - गुनगुनाती
चारदीवारी पर
चुप्पी छा गई.
दोपहर में दो पल
झपकी-सी आ गई थी ..
बस इतने में ही
बदल गया सब कुछ ?
शाम हो चली
ठंडी हवा बह रही..
ये सब सोच कर जी
बेहद घबराता है.
पर जो हो ही गया
उसे भुला
नए सिरे से
संसार संवारना
मुझे
आता है.
चोट खाकर संभलना,
टूटी माला के मोती पिरोना,
नए बटन टांकना,
फटी जेबें सिलना,
हर हफ्ते जाले उतारना,
घर का कोना कोना
साफ़ रखना,
फटे दूध का
छेना बनाना,
फ्यूज़ ठीक करना,
छोटी - मोटी मरम्मत करना ..
सब आता है
मुझे.
अब वो बात नहीं रही,
पर कोई बात नहीं.
जो भी बचा है उसे
बड़े ठाठ से,
लगा कर कलेजे से,
जीना आता है मुझे.
noopuram
देखते - देखते
ना जाने कब
सारे फ़र्नीचर पर
धूल की तह
जम गई.
आँख की नमी
बर्फ़ हो गयी.
धमनियों में
खून की
रवानी
थम गई.
बालकनी में
फूली बेल
मुरझा गई.
बरनी के अचार में
फफूंद लग गई.
हंसती - गुनगुनाती
चारदीवारी पर
चुप्पी छा गई.
दोपहर में दो पल
झपकी-सी आ गई थी ..
बस इतने में ही
बदल गया सब कुछ ?
शाम हो चली
ठंडी हवा बह रही..
ये सब सोच कर जी
बेहद घबराता है.
पर जो हो ही गया
उसे भुला
नए सिरे से
संसार संवारना
मुझे
आता है.
चोट खाकर संभलना,
टूटी माला के मोती पिरोना,
नए बटन टांकना,
फटी जेबें सिलना,
हर हफ्ते जाले उतारना,
घर का कोना कोना
साफ़ रखना,
फटे दूध का
छेना बनाना,
फ्यूज़ ठीक करना,
छोटी - मोटी मरम्मत करना ..
सब आता है
मुझे.
अब वो बात नहीं रही,
पर कोई बात नहीं.
जो भी बचा है उसे
बड़े ठाठ से,
लगा कर कलेजे से,
जीना आता है मुझे.
noopuram
कुल जमा पाई
पुरानी फोटो
पुरानी डायरीयों
पुरानी चिट्ठियों
पुरानी स्मृतियों
पुरानी सारी बातों को,
जोड़ कर,
घटा कर,
हिसाब लगाया है ...
अतीत का बड़प्पन
भविष्य का बोध
कुल जमा पाया है.
जो हासिल हुआ है,
माथे से लगाया है.
noopur bole
पुरानी फोटो
पुरानी डायरीयों
पुरानी चिट्ठियों
पुरानी स्मृतियों
पुरानी सारी बातों को,
जोड़ कर,
घटा कर,
हिसाब लगाया है ...
अतीत का बड़प्पन
भविष्य का बोध
कुल जमा पाया है.
जो हासिल हुआ है,
माथे से लगाया है.
noopur bole
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