सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

बशर्ते प्यार  ...

क्या कहा ?
बुढ़ापे में प्यार ! 
क्यों भैय्या ?
प्यार का
उम्र से क्या सरोकार !
कुछ  रिश्ते 
दिन चढ़ते ,
बनते हैं . 
कुछ नाते
दिन ढलते
पार्क की बेंच पर बैठे
सूर्यास्त देखते देखते
जुड़ते हैं .

हाँ ये सच है ,
हर उम्र का
अंदाज़ जुदा होता है ;
पर फ़लसफ़ा वही 
रहता है .
यानी
कोई फ़लसफ़ा नहीं 
होता है .
तट से बंध कर नहीं,
नदी का पानी 
ख़ुद-ब-ख़ुद
रवां होता है .

होता है 
पानी वही,
पर कहलाता है कभी
पहाड़ी झरना ..
और इसी पानी का
एक दिन
किनारों ने देखा
चुपचाप बहना .

दोनों को देखना
लगता है भला .

अहम है पानी का साफ़ होना,
फिर क्या नदी .. क्या झरना .
क्यों रहे सूना, मन का कोई कोना .
सहज है हर उम्र में, प्यार होना .




अभी

बस देर मत करो . 
जो करना है -
कर डालो,
अभी .

बस देर मत करो . 
जो कहना है -
कह डालो,
अभी .

अभी से अच्छा वक़्त 
फिर नहीं आएगा .
जो देना है - समय
इस दम दे कर जायेगा .

बस देर मत करो .