रविवार, 19 फ़रवरी 2012

अलख

 

जब चाँद गगन में खिला,
सूरज था घोङे बेच कर सोया.
दिन भर का थका-हारा,
रात के बिछौने पर पसरा.

चाँदनी चुपके से आई,
धरती को ओढनी ओढाई.
नभ के तारे बटोर लाई,
और धीमे-धीमे लोरी सुनाई.

दिन बीते अमावस आई,
काजल से काली रजनी लाई.
कुछ ना देता था दिखाई,
तब तारों ने इक बात सुझाई.
क्यों ना अपनी टोली में,
दिये भी शामिल कर लें भाई ?
सभी के मन को बात ये भाई,
टिमटिमाते दियों की सभा बुलाई.

दिये आखिर मिट्टी के होते हैं,
सो बङे ही सीधे-सादे होते हैं.
झट से मान गये,
विपदा टाल गये.

दिये आखिर मिट्टी के होते हैं,
सो बङे ही मेहनती होते हैं.
तेल-बाती जुटा लाये,
झटपट झिलमिल जलने लगे.

सूरज ने चँदा ने सुना,
दोनों ने खुश होकर कहा,
समय पर जो काम आया,
वही मीत सबसे भला.

चँदा सूरज तारे दिये,
अब दोस्त कहलायेंगे.
सब साथी मिलजुल के,
जग का अँधेरा मिटायेंगे.

चँदा सूरज और तारे जब थक जायेंगे,
छोटे-छोटे मिट्टी के दिये बीङा उठायेंगे.
जब-जब अमावस आयेगी,
जगत की दृष्टि हर ले जायेगी,
दिये की अडिग लौ
अलख जगायेगी.

जिस दिन हज़ारों दिये जगमगायेंगे,
हम सब मिल कर दीपावली मनायेंगे. 





सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

बहता चल



कल कल बहता नदी का जल,
सजग हमें करता प्रतिपल.

जीवन का छंद है बङा सरल,
बस सरल भाव से गाता चल.

लहरों का भावावेग तरल,
समझें मांझी के नयन सजल.