सोमवार, 23 दिसंबर 2013

क्या हुआ ?




क्या हुआ ?

उसने पूछा ।

जाने क्या देखा  . . 
मेरा उदास चेहरा ?
या देखी परेशानी
मेरी पेशानी पर ?
या पढ़ ली बेचैनी 
बातों में मेरी ?  

मेरे लिए बड़ी बात है ये 
कि उसने पूछा तो सही ।
आप दिनों - दिन घुटते रहते हैं,
मन ही मन छटपटाते रहते हैं,
और किसी का ध्यान तक जाता नहीं ।

और फिर अचानक एक दिन 
कोई पूछ बैठता है -
क्या हुआ ?

जैसे चोट पर कोई रख दे, 
रुई का फाहा ।
जैसे दिल पर से उतर जाये, 
बोझ मनों का ।

केवल दो शब्द  . . 
क्या हुआ ?

और हम किसी बेहद अपने से भी
पूछना भूल जाते हैं,
या सोच ही नहीं पाते हैं,
कितना ज़रूरी है ये पूछना भी ।

कहने को छोटी - सी बात है,
पर किसी के लिए बहुत बड़ी राहत है ।

पूछ कर देखो तो सही ।
कभी न कभी तुम्हें भी,
ज़रुरत तो पड़ेगी ही ।

दौड़ते - भागते जीना,
कुछ देर रोक कर,
ज़रूरी है ठहर कर पूछना  . . 

क्या हुआ ?


                  

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

धन्यवाद सचिन




समूची आबोहवा 
धुली - धुली सी,
बात चल रही है 
सचिन की ।

सचिन का संन्यास लेना,
हज़ारों दिलों का टूटना ।
करोड़ों दिलों पर हुक़ूमत करना,
मुस्कुराती आँखों का नम होना ।

जब सचिन ने शुरू किया 
धन्यवाद कहना,
मंत्रमुग्ध सुन रहा था 
स्टेडियम का कोना - कोना ।

तुम्हारे चेहरे पर वही सादगी, 
वही सरल मुस्कान ।          
तुम्हारे शब्दों में भी वही, 
ऊँचे नभ की उड़ान ।
शायद ही बचा कोई ऐसा कीर्तिमान,
जिस पर ना लिखा हो तुम्हारा नाम ।

बहुत कम दिन ऐसे होते हैं,
जब आशाओं के ताल भरे होते हैं ।
सारी बुरी ख़बरों पर 
शुभ संवाद हावी होते हैं ।
ऐसे ही थे ये दो - तीन दिन,
जब हर तरफ हो रही थी सिर्फ़ 
खेल, शुद्ध खेल की बात ।
तुम्हारे 
चौबीस साल के 
बेदाग़ सफ़र की बात ।

जैसे साफ़, सफ़ेद कागज़ पर उतारे,  
मोती जैसे जज़्बात ।
जैसे तारों के शामियाने के नीचे, 
चैन की साँस लेती रात ।
कुछ ऐसा सुक़ून था 
फ़िज़ा में,
इधर कुछ दिन 
तुम्हारे बहाने  . . 

धन्यवाद सचिन ।

                  

सोमवार, 4 नवंबर 2013

आकाशदीप



ये लो मित्रों !
दिवाली बस आ ही गयी समझो !
आज धनतेरस है ।
सड़कों पर भीड़ का कोरस है,
                          हर तरफ़ ।   
और रोशनी का मेला है ,
                 चारों तरफ़ ।  

ये मुम्बई की दिवाली है ।
फुटपाथ पर लगे हैं फूलों के ढ़ेर ।
पीले और नारंगी गेंदा कई - कई सेर ।
रंगोली का साज़ो - सामान , खील बताशे ।
मिटटी के लक्ष्मी - गणेश, हटरी और अनगिनत दिये ।
रंग - बिरंगी कंदीलों की लगी है कतार ।
बिजली की झालरों से सजा है बाज़ार ।

हलवाई की दुकानों में 
चिने हुए मिठाई के डिब्बे ।
हर घर की बाल्कनी में ,
खिड़की में कंदीलें ।
पेड़ों के बीच झूलती कंदीलें ।
जिधर देखो उस तरफ़ 
बेशुमार कंदीलें  . . 
चालों में  . .  फ्लैटों में  . . 
झोंपड़पट्टी में  . .              
कंदीलें ही कंदीलें ।
चमचमाती दुकानों में 
तरह - तरह के पटाखे ।
दिवाली के मेले में 
किसिम - किसिम के तमाशे ।

हर तरफ़, 
खुशहाली की लहर ।
दुकानों के बाहर ,
घरों की ड्योढ़ी पर 
रखा है दिया ,
इस दिवाली का पहला दिया ।
दिया है तो रोशन है हर दिशा ।      

दिया है तो दिये तले 
अँधेरा भी होगा ही ,
कहीं न कहीं ।
काश कि इन अँधेरे कोनों तक 
हर सूने मन और आँगन तक 
पहुंचे रोशनी का पैग़ाम ।
दिये जलते रहें 
हर घर की दहलीज़ पर ,
आलों में ,
छज्जों पर  . . 
और सबके ज़हन में 
जगमगाते रहें 
आकाशदीप ।



मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

आज, अचानक . . अभी !




आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

आज सुबह अख़बार में, एक अच्छी ख़बर पढ़ी !
एक अच्छी ख़बर से, सेरों उम्मीद बढ़ी !


आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

दूर देस से भाई का , फ़ोन आया अभी !
बात कर के हुआ ज्ञात, कि घर पर ठीक हैं सभी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

गुलाब के पौधे पर आज ,सुबह खिली एक कली !
फूल - पत्तियों से क्यारी , हुई है हरी - भरी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

बड़े दिनों बाद पड़ोसन के , चेहरे पर देखी हँसी !
अरसे बाद उसकी देहली पर , मोहक अल्पना सजी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

आज भोजन में दाल उड़द की ,बड़ी स्वादिष्ट बनी !
साथ में थी मिस्सी रोटी , और थी गुड़ की डली !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

बच्चों के साथ सुबह - सुबह , जम के फुटबॉल खेली !
दोस्तों ने मुझे छका कर , देखो शर्त जीत ली !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !

बहुत दिनों पहले खोयी , एक पुरानी सीडी मिल गयी !
शब्दकोष के पन्नों में मिली , पिताजी की लिखी चिट्ठी !

आज, अचानक . .  अभी ! 
मन हुआ कुछ गाने का !
मेज़ पर तबला बजाने का !
आज, अचानक . .  अभी !





रविवार, 27 अक्तूबर 2013

Praying Without Any Reason




Prayer sews up the torn ends of our lives, when needed. And prayer enhances the quality of our daily lives, when done without any expectations. However, everyone has a reason to pray. And some pray without any reason. That brings us to the question.. why do we pray ?



Is prayer equivalent to asking ? Asking for good health, success, happiness and anything and everything under the sun.May be yes, on the level of daily consciousness. May be not, if it is the language of our soul. 


Bapu .. Mahatma Gandhi has said about prayer -


"Prayer is not asking. It is a longing of the soul." 





Longing indeed. When the soul wants to spread its wings and reach out to God.. talk to Him.. its called prayer. It is to offer our purest thoughts to God that we pray.  




What is my reason for praying ? Prayer works like an emotional catharsis for me. Every time I pray, it changes me a little bit. It helps me figure out things for myself by laying my heart open before the omniscient God. 





But I believe God has a sense of humour too and he loves to listen to us when we go to Him asking for things ranging from "good marks in the board exam.." to "Oh God please ! make her fall in love with me !"





The most innocent prayers are said by the children. They are unaware of this dilemma of what prayer is. They have been taught to pray and to trust God. So they entrust Him with their secret desires and innocent wishes. Their prayers are the most touching ones as well. 




Remember the story in which a little girl gifts her father a box filled with wishes and prayers !


The funniest side of praying is that sometimes older people sound like children in their desperation to pray for things to change the equation of their lives ! A college student I know prayed to God so he may pass the examination in which he had hardly answered the paper ! What would you call that ? Misguided faith in God's power or trying to fool even God !  


Myriads of reasons to pray ! Pray to lose weight ! To win the cricket match ! To get the cinema tickets for the first show !

To get that coveted job ! To get married to a wealthy and wise girl ! Hmmm ! To be the next lucky winner of the first prize !
To become the party secretary ! To get a promotion ! No end to it really !


To talk about the ritual of praying. Some people just sit and meditate. Some chant mantras. Some count beads. Some light a lamp or an incense stick. What we call the agarbathies in our language. Lighting an incense stick is like weaving a thread of our innermost thoughts. The fragrance kind of purifies the surroundings and helps one to be in deep thought. 


Cycle Brand Agarbathi pack just serves the purpose when prayers are held at our home. It has a most soothing and calming effect on our tired and frayed nerves. That is why we will be celebrating Diwali this year with the Cycle Lakshmi Pooja Pack to complete this  year's pooja rituals.



The Indian tradition is to begin our day with a prayer of the well being of our fellow human beings. 




Sarve Bhavantu Sukhinah, Sarve Santu Niramayah. 

Sarve Bhadrani Pashyantu, Ma Kashchid Dukh Bhagbhavet.

Wishing happiness, good health, the right perspective in life devoid of sorrow.                                                                    





In fact, in all cultures of the world the practice is to begin a day and end a day with a prayer.



                                                          


When we pray God smiles at us and showers us with his blessings, whatever our reason to pray is.





http://www.pureprayer.com/

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

ऐलाने सहर


स्मृतियाँ बटोर लाई 

दिवाली की सफ़ाई !
घर के जिन कोनों ,
तहखानों को ,
बरस में एक बार 
टटोल कर 
देखा जाता है  . . 
उन कोनों , तहखानों में 
कई खज़ाने 
छुपे होते हैं ।
सामान की परतों में 
यादों के पुलिंदे
दबे होते हैं ।

पुरानी चिट्ठियों में 

उन लोगों के ख़त मिले 
जो अब दुनिया में 
नहीं हैं ।
पर चिट्ठी पढ़ते - पढ़ते 
वो धुंधले चेहरे 
स्पष्ट हो गए ।
जैसे कल और आज के 
बीच की लकीरें 
मिट गई हैं ।
यादें नज़दीक आ के 
माथा सहलाने लगी हैं ।
समय जैसे 
समंदर की लहरों की तरह 
तट पर 
लौट आया है ।

वो भी क्या दिन थे !

बड़े विस्तार से 
ख़त लिखे जाते थे ।
बातों के सिलसिले 
चिट्ठियों में 
बुने जाते थे ।

बहुत से 

ग्रीटिंग कार्ड मिले ।
कुछ लोग साथ रहे ,
कुछ नहीं रहे ।
बचे तो सिर्फ़ उनके 
हस्ताक्षर बचे ।

बड़े संदूक में से 

माँ के हाथ के बुने 
रंग - बिरंगे स्वेटर निकले ।
दो - तीन मफ़लर भी मिले ,
जो पापा पहना करते थे ।
इन स्वेटरों और 
मफ़लरों की तहों में 
यादों की गर्माहट है ।

स्टील की अलमारी के 

ऊपर वाले कोने में ,
एक थैली में 
बहुत सारे सिक्के मिले ।
कभी बचपन में 
दादी ने 
बहुत सारे 
पैसे दिए थे ।
अब जो मिले  . . 
पुराने सिक्के खनके 
तो बिखर गए 
कई सुधियों के तिनके ।

और एक लकड़ी के 

नक्काशी वाले 
डिब्बे में 
कुछ कंचे मिले  . . 
डाक टिकट पुराने  . . 
माचिस के डिब्बे  . . 
रंग - बिरंगी पेंसिलें  . . 
लूडो , साँप - सीढ़ी  . . 
एक लाल रंग की सीटी  . . 
खुशबू वाली रबर  . . 
चन्दन का पेन और पेपर कटर  . . 
बचा के रखी हुई चीज़ें ,
या कहिये 
सँभाल के रखी हुई यादें ।
अब यादें ही तो बची हैं ।
यादें  . . जो जीवन को सींचती हैं ।

दुछत्ती पर रखी एक कंडिया में 

मिले कुछ मिट्टी के दीये 
जो थे हाथों से पेंट किये 
और कुछ लकड़ी के खिलौने ,
जिनसे खेलने वाले 
बच्चे ही नहीं अब घर में ।
अब सोचा है किसी बच्चे 
को दे दिए जाएं ये खिलौने ।
किसी नौनिहाल की मुस्कान 
बन जाएं ये खिलौने ।

स्टोर में रखी छोटी अटैची में 

छह - सात रूमाल मिले कढ़े हुए ।
एक मेजपोश और दो दुपट्टे 
पेंट किये हुए पर अधूरे ।
बरसों पहले जो काम छूट गए थे 
किसी वजह से बीच ही में ,
अब भी वो हो सकते हैं पूरे ।
अधूरे काम और अधूरे सपने 
पूर्ण करने के लिए 
ही शेष जीवन है ।

घर के भूले - बिसरे 

हर कोने में ,
मेज़ की दराज़ों में ,
बरसों पुरानी किताबों में ,
रसोई के आलों में ,
दुछत्ती पर रखे बक्स में ,
बीते समय के 
पदचिन्ह हैं ।
इनसे जुडी यादें 
जीवन के  सफ़रनामे में ,
वो मील के पत्थर हैं 
जो भवितव्य के 
पदचाप की 
आहट पा जाते हैं ।
बरसों तक जिन्हें 
रखा सहेजे ,
स्मृतियों में लिपटी वो चीज़ें  . . 
उस धरोहर पर 
है वक़्त की मुहर ।
वक़्त जो इस ठिठके पहर 
कर रहा है ऐलाने सहर ।


                                       

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

हारसिंगार




कभी तुमने लगाया था ,
हारसिंगार का पौधा ।

किताबों में पढ़ा था ,
हारसिंगार का खिलना 
कितना मन को छूता है ।
उपन्यासों में पढ़े थे ,                  

कितने भावुक प्रसंग 
हारसिंगार से जुड़े हुए ।

कविताओं के छंद  …  
गीत के बोलों में  …  
हारसिंगार झरते थे ।
बहुत भाता था तुम्हें , 
हारसिंगार का झरना ।     

अब तुम्हारा बसेरा 
दूर गाँव हो गया ।
पर तुम्हारे घर की 
पहरेदारी कर रहा ,
फूलों से सजा हुआ 
हारसिंगार का कोना ।


सारे मोहल्ले के 
लोग ले जाते हैं , 
अब भी 
फूल चुन के , 
हमेशा की तरह ।



सड़क से गुज़रने वाले 
पहचानते हैं ,
भीनी - भीनी 
सुगंध की बयार ।




हारसिंगार के फूलों से 
झोली भर लेते हैं ,
लोग तुम्हें 
हारसिंगार के बहाने 
याद बहुत करते हैं ।     




शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

फूल


 
 
सड़क के किनारे ,
फुटपाथ पर 
बैठे थे,
शायद एक ही परिवार के 
कुछ लोग । 
औरतें,आदमी, बच्चे  . . 
सब लगे हुए थे 
फूलों की माला गूंथने में । 
सधे हुए हाथ 
फुर्ती से चल रहे थे । 
चारों तरफ उनके 
फूलों के ढेर थे । 
लाल , सफ़ेद , पीले 
फूल खिले - खिले ,
एकदम ताज़े ,
और पत्ते हरे । 
इन्ही फूलों और लोगों के बीच 
एक शिशु सोया था 
दरी पर ,
दीन - दुनिया से बेख़बर 
गहरी नींद में । 
उसका भोला चेहरा 
लग रहा था ,
अनेक फूलों के बीच 
एक निश्छल मासूम फूल । 



शनिवार, 28 सितंबर 2013

जीवन उत्सव है



जीवन उत्सव है । 
पंछियों का कलरव है ।
जुगनुओं की जगमग है ।
नूपुरों की छन - छन है ।
चूड़ियों की खन - खन है ।   
पायल की छम - छम है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
ढोलक की थाप है ।
अनचीन्हा राग है ।
मेंहदी की छाप है ।
हवन का ताप है ।
विदूषक का स्वांग है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पग की थिरकन है ।
ह्रदय की धड़कन है ।
गीत की सरगम है ।
स्वप्नों की करवट है ।
समय की सिलवट है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पूजा की शुभ वेला है ।
त्यौहारों का मेला  है ।  
पुरुषार्थ अलबेला है ।
आस्था की अनुपम लीला है ।
जिजीविषा की पाठशाला है ।
जीवन उत्सव है ।

जीवन उत्सव है ।
पंचतंत्र की कथा है ।
भावुक मन की व्यथा है ।
अनुभूति की यात्रा है ।
अंतर्मन की कविता है ।
कर्म और कर्त्तव्य की गीता है ।
जीवन उत्सव है ।


                               

बुधवार, 25 सितंबर 2013

नमस्कार


लो आ गई 
ओस की बूंदों सी,
पवित्र और पारदर्शी
एक नयी सुबह 
ताज़ी नमकीन !

जैसे खुशखबरी का तार । 
जैसे अच्छी ख़बरों से भरा अखबार ।   
जैसे बारिश की ठंडी फुहार । 
जैसे नदी किनारे भीनी - भीनी बयार । 
जैसे पुराना आम का अचार । 
जैसे सहेलियों में मीठी - सी तकरार । 
जैसे रेडियो पर आज के मुख्य समाचार । 
जैसे बूढ़ी दादी का लाड़ - दुलार । 
जैसे बच्चों की गुड़ियों का संसार । 
जैसे गाय के बछड़े की पुकार । 
जैसे खिले - खिले फूलों की बहार । 
जैसे द्वारे पर स्वागत का नेग - चार । 

जैसे जीवन का सत्कार । 
ऐसी सुबह को, 
जागने वाले का 
नमस्कार !



शनिवार, 14 सितंबर 2013

समाधान





फ़ैसला आ गया । 

आख़िर , फ़ैसला आ गया ।   
फ़ैसला सुन कर 
हमारी प्रतिक्रिया 
क्या होनी चाहिए ?

एक सही फ़ैसले पर 
खुश होना चाहिए ?
निश्चिन्त होना चाहिए ?
कि अब ऐसे अपराध 
कम होंगे  . . 
अपराध करने वाले डरेंगे  ? 

और फिर जीवन 'चलता' होगा, 
अपने रस्ते ।  
सब कुछ चलता रहेगा ,
जैसे चलता है ।   
जैसे लट्टू घूमता है 
अपनी धुरी पर ।  

तब तक ,
जब तक 
अगले बलात्कार की ख़बर  
नहीं आ जाती । 
और अफ़सोस कि वो 'अगली बार ' 
आने में 
ज़्यादा देर नहीं लगती ।   

अगला समाचार  . . .  
वही दुराचार । 

फिर वही सवाल ।  
फिर वही बवाल ।   

समाधान क्या है ?

शुरुआत क्या 
अपने घर से 
की जा सकती है ?
क्या अपने  बेटे को 
माँ ये समझा सकती है 
कि स्त्री की देह कोई 
चीज़ नहीं 
जिससे जैसे चाहे 
खेला जाये ।   
स्त्री की देह 
वो नेमत है, 
जिसके रहते 
तुम्हारा जन्म हुआ है ।   
इस स्त्री देह को 
जब भी छुओ, 
सम्मान से छूना ।   

कभी मत भूलना !
इस स्त्री को जो 
चोट पहुँचाओगे,
अपने - आप को कभी 
माफ़ नहीं कर पाओगे ।     




शनिवार, 7 सितंबर 2013

राखी



यूँ तो 
कोई बंधन नहीं। 
ऐसा कोई 
नियम नहीं। 
इसलिए ,
तुम बाध्य नहीं कि 
अपनी बहन की राखी,
ज़्यादा देर तक 
या 
कई दिनों तक 
बांधे रखो।

पर एक बात है। 

अच्छा लगता है,
जब अपना भाई 
पहने रहता है ,
कलाई पर राखी ,
कई दिनों तक। 

शायद उसे अहसास है ,

बहन ने कितने जतन से 
चुनी है राखी उसके लिए। 
बरस भर बाट जोही है ,
आस पाली है 
इस दिन के लिए।
मन में प्रार्थना संजोये ,
दुकानों की कितनी 
फेरियां लगा के 
ढूंढी है राखी 
सही वाली  . . 

जिसमें  . . 

रेशम तो होना ही चाहिए ! 
रंग भी चोखा चाहिए ! 
और मंगल चिन्ह सारे 
होने चाहिए ! 
राखी पर 
श्रीफल , मंगल कलश 
सतिया , ॐ और 
मौली की डोरी 
तो होनी ही चाहिए !    
आखिर सबसे सुन्दर राखी 
साध है बहना की !

और बनी - बनायी राखी 

जब मन को न भाए ,
बाज़ार के रंग फीके पड़ जायें ,
तब ख़ुद अपने हाथों से
बहन बनाती है राखी। 

वो जो राखी में 

पोती है मोती ,
पिरोती है मन के 
भावों को भी। 

इतने स्नेह और जतन से

बाँधी गई राखी 
जब भाई 
अपनी कलाई पे 
बड़े ही गर्व से 
पहने 
इतराते डोलते हैं  . . 
बहुत अच्छा लगता है। 




गुरुवार, 5 सितंबर 2013

विडंबना



कितने झूठ 
बोलने पड़े ,
एक सच 
समेटने 
के लिए।   



रविवार, 1 सितंबर 2013

रेशम के धागे चार



रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार ! 

भाई के संग 
खेल - खेल कर
हुई बड़ी।  
भाई के संग 
झगड़ - झगड़ कर 
हुई खड़ी। 
भैया की ये बहन बड़ी अलबेली !
अपने भैया की घनी लाडली बावली !

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार ! 

बहन की आँखों का तारा।  
भाई , बहन को बहुत ही प्यारा।  
साथ - साथ में ऊधम करना ,
कभी रुलाना, कभी मनाना। 
बहन का भाई बड़ा अलबेला। 
सुख - दुःख का साथी, बन्धु गर्वीला !

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार !

दोनों ने मिल कर की 
बदमाशियाँ !
दोनों ने आपस में बाँटी 
कहानियाँ । 
इन दोनों की साझी 
छुटपन की नादानियाँ। 
इन दोनों ने समझीं ,
रिश्तों की ज़िम्मेदारियाँ । 

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार ! 

न मांगे कभी कोई अधिकार ,
सहज ऐसा भाई - बहन का प्यार।  
ये रिश्ता मानो कोई उपहार ,
संजोये मन जिसे बार - बार।  

रेशम के कच्चे धागे चार। 
इन्ही चार धागों में सिमटा 
भाई - बहन का प्यार। 
भाई - बहन का प्यार। 
लो आया राखी का त्यौहार ! 





शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

गले मिले ईद और तीज









छायी है हर तरफ हरियाली !
बूंदा-बांदी का है मौसम !
दो त्योहारों की ख़ुशी मिली ! 
गले मिल रहे ईद और तीज !



इधर मिली छोटों को ईदी !          
उधर बहन-बेटियों को सिंधारा !
इधर आपस में हुई मिलनी !
उधर सखियाँ झूलने चलीं झूला !    
  
 

छायी है हर तरफ हरियाली !
बूंदा-बादी का है मौसम !
दो त्योहारों की ख़ुशी मिली ! 
गले मिल रहे ईद और तीज !


                                             
  
इधर बिखरी हँसी झिलमिलाती !
उधर घेवर, घूमर और हरी चूड़ियाँ !
इधर हथेली पर रची मेहँदी !
उधर ढोलक की थाप पर बंधा समाँ ! 




छायी है हर तरफ हरियाली ! 
बूंदा-बांदी का है मौसम !  
दो त्योहारों की ख़ुशी मिली ! 
गले मिल रहे ईद और तीज !