उसकी आँखों की चमक
कौंधती है जब-तब मन में,
गड़ जाती है कील की तरह ,
कुरेदती है मन के भाव ,
पूछती है सवाल अटपटे
उसकी आँखों की चमक .
उसकी आँखों की चमक
कौंधती है जब-तब मन में ,
हलचल मचाती है पारे की तरह ,
फिसलती जाती है बेझिझक ,
अंतर्मन की गहराई में
उसकी आँखों की चमक .
उसकी आँखों की चमक
कौंधती है जब-तब मन में ,
उसकी ही नाक की लौंग की तरह,
उजास भर देती है क्षण भर ,
और छिप जाती है पलक झपकते
उसकी आँखों की चमक .