बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

हारसिंगार




कभी तुमने लगाया था ,
हारसिंगार का पौधा ।

किताबों में पढ़ा था ,
हारसिंगार का खिलना 
कितना मन को छूता है ।
उपन्यासों में पढ़े थे ,                  

कितने भावुक प्रसंग 
हारसिंगार से जुड़े हुए ।

कविताओं के छंद  …  
गीत के बोलों में  …  
हारसिंगार झरते थे ।
बहुत भाता था तुम्हें , 
हारसिंगार का झरना ।     

अब तुम्हारा बसेरा 
दूर गाँव हो गया ।
पर तुम्हारे घर की 
पहरेदारी कर रहा ,
फूलों से सजा हुआ 
हारसिंगार का कोना ।


सारे मोहल्ले के 
लोग ले जाते हैं , 
अब भी 
फूल चुन के , 
हमेशा की तरह ।



सड़क से गुज़रने वाले 
पहचानते हैं ,
भीनी - भीनी 
सुगंध की बयार ।




हारसिंगार के फूलों से 
झोली भर लेते हैं ,
लोग तुम्हें 
हारसिंगार के बहाने 
याद बहुत करते हैं ।