शनिवार, 25 जून 2016

सोनमोहर


हर रोज़ उस रास्ते से 
गुज़रते देख कर मुझे 
क्या कहा होगा दूसरे पेड़ों से
उस अकेले सोनमोहर ने ?

एक दिन इस थके-माँदे 
राहगीर के रास्ते में ,   
क्यूँ ना बिछा दें 
फूल बहुत सारे ?

एक दिन के लिए ,
शायद बदल जाएं 
उसके चेहरे के,
भाव थके -  थके से ।

रास आ जाएं 
करतब ज़िंदगी के ।
बाहें फैला दें 
दायरे सोच के ।

तो क्यूँ ना बिछा दें 
फूल बहुत सारे ?