मैं एक दिया हूँ ।
उजाले में,
कोई मुझे क्यों जलाये ?
मेरा काम ही है,
अँधेरे में बलना ।
अँधेरा ना हो,
तो कोई मुझे
क्यों आज़माये ?
सूरज के रहते
कोई क्यों दिया जलाये ?
अंधकार की
परिणति है दिया ।
जब जब फैले
काली रजनी की स्याही,
उजाले की
एक आस है दिया ।
दिया एक
प्रयास है,
तम को हरने का ।
एक प्रण है,
मनोबल का ।
एक आस्था है,
यथार्थ की स्वीकृति का ।
समय का चक्र
यथावत घूमेगा ।
अँधेरा तो होगा ।
पर अँधेरे का
मुकाबला करने के लिए,
एक दिया बहुत होगा ।