गुरुवार, 14 सितंबर 2017

अपने मन की भी कहना



नदी में बहते पानी
सरोवर में खिले कमल
पहाड़ों पर जमी बर्फ़
खेतों में खिली सरसों
बच्चों से भरी स्कूल बस
पुल पर से गुज़रती रेल
कच्चे पक्के घरों
शतरंज के मोहरों
सियासती पैंतरों
किस्मत की लकीरों
अपनों की बेरुखी
पुरानी चोट की पीर
वक़्त की बेअदबी
झरने सी हँसी
जानलेवा रूप
खिली खिली धूप
सामाजिक मसले
रिश्तों के पचड़े .. 

और ऐसी तमाम बातें  . .
इन सबके बारे में लिखना ।

जब सब कह चुको ।
वेद पुराण बाँच चुको,
तब एक बात,
बस एक बार,
अपने मन की भी कहना ।