कुछ बातें
गड़ती हैं
कलेजे में ऐसे,
जैसे शब्द
बन गए हों शूल ।
और कुछ बातें,
धीरे - धीरे
खिलती हैं
मन के ताल में,
मानो कमल के फूल ।
बातें
बीज की तरह होती हैं ।
जो बो दो ,
वही उपजता है
मन उपवन में ।
इसीलिए तो
कहीं उगते हैं कैक्टस ,
कहीं बबूल के कांटे ,
कहीं सरसों के खेत लहलहाते ,
कहीं अमर बेल,
और कहीं खिलते हैं
दूर दूर तक,
बेशुमार,
फूल ही फूल ।