मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

कमल के फूल




कुछ बातें 
गड़ती हैं 
कलेजे में ऐसे, 
जैसे शब्द 
बन गए हों शूल ।

और कुछ बातें, 
धीरे - धीरे 
खिलती हैं 
मन के ताल में,
मानो कमल के फूल । 


बातें



बातें 
बीज की तरह होती हैं ।
जो बो दो ,
वही उपजता है 
मन उपवन में ।
इसीलिए तो 
कहीं उगते हैं कैक्टस ,
कहीं बबूल के कांटे ,
कहीं सरसों के खेत लहलहाते ,
कहीं अमर बेल, 
और कहीं खिलते हैं 
दूर दूर तक, 
बेशुमार, 
फूल ही फूल ।