गुरुवार, 22 मार्च 2018

हाथ के बुने स्वेटर


बुआ कहती थीं,
कड़ाके की ठण्ड में जब तक 
हाथ के बुने स्वेटर ना पहनो 
चैन नहीं पड़ता  . . 
जाड़ा सहन नहीं होता ।
हाथ के बुने स्वेटर में 
बुनी होती हैं 
बुनने वाले की भावनाएं ।

जितने दिन 
स्वेटर बुना गया होगा,
जिसके लिए बुना गया उसे 
ऊन के फंदे चढ़ाते - उतारते 
बहुत याद किया गया होगा ।
इसलिए हाथ के बुने स्वेटर में 
स्नेह और स्मृतियों की ऊष्मा  . . 
आत्मीयता बसी होती है ।

जिस गुनगुनी धूप में
कभी छत पर,
कभी आँगन में,
कभी खाट पर,
कभी आरामकुर्सी पर 
सुस्ताते हुए 
बतियाते हुए,
बीच -बीच में 
हाथ तापते हुए  
स्वेटर बुना गया ,
उस कुनकुनी धूप की गरमाहट 
हाथ के बुने स्वेटर 
भीतर तक पहुंचाते हैं ।
मन की तंग गलियों में जमी 
गलाने वाली 
सर्दी को पिघलाते हैं ।

जो पहना है तुमने, 
ना जाने कितनी बार 
ये स्वेटर सहलाया गया है ।  
सोच में डूबी 
आँखें पोंछ-पोंछ कर 
थपथपाया गया है ।  
बहुत आराम देता है 
हाथ का बुना स्वेटर ।
क्योंकि ये ऊन से नहीं 
बड़े प्यार-से बुना गया है ।