बुआ कहती थीं,
कड़ाके की ठण्ड में जब तक
हाथ के बुने स्वेटर ना पहनो
चैन नहीं पड़ता . .
जाड़ा सहन नहीं होता ।
हाथ के बुने स्वेटर में
बुनी होती हैं
बुनने वाले की भावनाएं ।
जितने दिन
स्वेटर बुना गया होगा,
जिसके लिए बुना गया उसे
ऊन के फंदे चढ़ाते - उतारते
बहुत याद किया गया होगा ।
इसलिए हाथ के बुने स्वेटर में
स्नेह और स्मृतियों की ऊष्मा . .
आत्मीयता बसी होती है ।
जिस गुनगुनी धूप में
कभी छत पर,
कभी आँगन में,
कभी खाट पर,
कभी आरामकुर्सी पर
सुस्ताते हुए
बतियाते हुए,
बीच -बीच में
हाथ तापते हुए
स्वेटर बुना गया ,
उस कुनकुनी धूप की गरमाहट
हाथ के बुने स्वेटर
भीतर तक पहुंचाते हैं ।
मन की तंग गलियों में जमी
गलाने वाली
सर्दी को पिघलाते हैं ।
जो पहना है तुमने,
ना जाने कितनी बार
ये स्वेटर सहलाया गया है ।
सोच में डूबी
आँखें पोंछ-पोंछ कर
थपथपाया गया है ।
बहुत आराम देता है
हाथ का बुना स्वेटर ।
क्योंकि ये ऊन से नहीं
बड़े प्यार-से बुना गया है ।