मेरे ज़हन में
एक किताब है,
जिसे बड़े जतन से
संभाल कर रखा मैंने ।
ये किताब . . किताब नहीं
इबादत है ।
इसमें दर्ज हैं
वो सारी बातें,
जो सच्चे मन से
चाही थीं कभी . .
कुछ करते बनीं,
कुछ रह गईं रखी
मेज़ की आख़िरी
दराज में ।
हो सकता है,
कभी कोई
मेरे ज़हन को तलाशे,
और उसे मिल जाए
यही किताब जो मेरी है,
पर मैंने उसके नाम की है ।